पहाड मे विवाह की परम्परागत रस्मे -विरासते धूमिल हो चली, कुडंली मिलान- कन्या को पिठ्या लगाना- कुल गोत्र का ख्याल, लेई से पताका चिपकाते लोग- खान पान की व्यवस्थाओं को सम्भालते टहलू- पिछौडो को रंगाती और सिक्को से छाप देती महिलाये- वर आचार्य की पीली रंगवाई धोती को रंगयाना- सुआल पथाई के सगुनआँखर, दुल्हे का झगुला सिर पर झालर वाला मुकुट – हाथो मे शीशा और रूमाल, घर के चावल के आटे से निकाले कुरमुवे, गोधूली मे बरात आगमन धूल्यर्घ(धूल को पानी का अर्घ्यं) – पुरोहितों का परिचय के उदगार ” *कि गोत्रस्य, कि प्रवरस्य कि शाखिन: कि वेदाध्यायियन: , कि शर्मण प्रपौत्री, कि शर्मण पौत्री…।कि नाम्नी वराभिलाषिणी श्री रूपिणीम आयुष्मती कन्याम्*” , गीतो से बरतियो को सताना, धुव्र तारे को अटल मान विवाह की अंतिम रस्मे, दुर्गुण पर बेटी दामाद का शंख से अभिवादन, घर मे प्रवेश पर अक्षत परखना, लोटे का जल घुमाकर वर वधू की नजर उतारना,बहन का दही की ठेकी संग दरवाजे पर स्वागत करना और मुहमागी सौगातें मिलने पर दाज्यू बोजी के लिये देली छोडना, नयी दुल्हन को नौला पूजन को ले जाना, नौले मे बर बधू के मुकुट को बिसर्जित करना, सामुहिक भोजन को बधू द्वारा सबसे पहले परोसकर गृहस्थ जीवन मे पदार्पण करना, शानदार भारतीय वैदिक संस्कृति की पहचान से अवगत करवाना
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक