रुद्रप्रयाग प्रशासन के पोलिंग पार्टियों को तुगलकी फरमान से भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. पोलिंग पार्टियां देर रात तक अगस्त्यमुनि पहुंचीं लेकिन वहां उनके रहने, खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी. आलम ये था कि कर्मियों को भूखा जमीन पर सोना पड़ा. कर्मियों ने नारेबाजी कर विरोध भी जताया.
रात लगभग 12 बजे कई कर्मचारियों का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने अव्यवस्थाओं के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. जिससे प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए और आनन-फानन में आईटीबीपी और पुलिस को बुलाना पड़ा. मौके पर पहुंचे उच्चाधिकारियों ने जैसे-तैसे कर्मचारियों को समझा-बुझाकर मामला शांत कराया. हालांकि, प्रशासन का मतदान के बाद उसी दिन वापस लौटने का तुगलकी फरमान किसी बड़ी दुर्घटना का सबब बन सकता था.
आलम ये था कि थकान से भरे कर्मचारी बेहाल थे. वहीं, न उनके चाय-पानी और खाने की व्यवस्था की गई थी और न ही वापस घर लौटने की. चाय एवं खाने के लिए उन्हें पैसे देने पड़े और आधी रात के बाद घर वापसी के लिए व्यवस्था न होने से कई कर्मचारी जमीन पर लेटे नजर आए. सुबह से मतदान में डटे कर्मचारी थकान से चूर होकर और बाद में हुई अव्यवस्थाओं से हार कर परेशान दिखे.
मतदान शाम 6 बजे संपन्न हुआ और संपूर्ण निर्वाचन सामग्री को निर्धारित मानकों के हिसाब से निपटाने में तीन-चार घंटों का समय लग गया. ऐसे में देर रात तकरीबन साढ़े तीन बजे तक कर्मचारी लौटते रहे. लेकिन जब वो अगस्त्यमुनि पहुंचे तो अव्यवस्थाएं देख अधिकांश कर्मी भड़क गए और अव्यवस्थाओं के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. दरअसल, रुद्रप्रयाग के कई पोलिंग बूथ काफी दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में थे. जहां सड़क होने के बावजूद भी आना-जाना जोखिम भरा था. बावजूद इसके जान हथेली पर रखकर चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारी जैसे-तैसे लौटते गए. कोई 11 बजे पहुंचा तो किसी को पहुंचते-पहुंचते सुबह के चार बज गये. फिर निर्वाचन सामग्री को जमा करते-करते जो वक्त लगा वो अलग.
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक