हरेला बीजारोपण
गर्मी के बाद इस त्योहार की शुरुआत मानसून के बीच होती है. जब प्रकृति में चारों तरफ हरियाली होती है. इस त्योहार को सावन के पहले दिन मनाया जाता है. इस साल इसे 16 जुलाई को मनाया जाता है. इस त्योहार के 9 दिन पहले ही 5 से 7 तरह के बीजों की बुआई की जाती है. इसमें मक्का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट्ट शामिल होते हैं. इसे टोकरी में बोया जाता है और 3 से 4 दिन बाद इनमें अंकुरण की शुरुआत हो जाती है. इसमें से निकलने वाले छोटे-छोटे पौधों को ही हरेला कहा जाता है.
उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला बीजारोपण दिनांक 7 जुलाई 2022 गुरुवार को होगा।
हरेला एक हिंदू त्यौहार है जो मूल रूप से उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल व कुमाऊँ क्षेत्र में मनाया जाता है।
सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है। इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, मक्का, सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है। नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं। दसवें दिन इसे काटा जाता है। 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है। घर के सदस्य इन्हें बहुत आदर के साथ अपने शीश पर रखते हैं। घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है! इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल अच्छी होगी! साथ ही ईश्वर से अच्छी फसल होने की कामना भी की जाती है।
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक