नरेंद्र पिमोली
घिनौड़ी एक दिल से दिल तक सुनने वाली रचना इस गीत में भावनाएं है सोच है विचार है। पलायन है तो माँ का प्यार है पुराने घरों के आंगन की महक है तो उन घरों में रहने वाली ये घिनौड़ी नाम की सदस्य(गौरिया पक्षी) भी उस घर का हिस्सा हुवा करती थी जन्हा इंसान खुद कम कमाता था पर अपने साथ साथ पशु पक्षियों के बारे में भी सोचता था और उनकी देखभाल भी करता था ।
आज का मनुष्य जन्हा कोरोडो की बात करता है वन्ही इंसानियत को भी बेच चुका है बस अपने बारे में सोचता है। उसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े वो करता है घरों में एक पक्षी का आना भी उसके मन को नही भाता धीरे धीरे ये पक्षी भी विलुप्त होने की कगार में हैं जिसका कारण आधुनिक घरों व मोबाइल टावरों को बताया जाता है क्या हम आज भी अपने घरों में कुछ गौरैया जैसी पक्षियों के लिए कुछ घोसले बना कर रखें। या गौरिया दिवस के दिन कुछ जन जागरूकता अभियान चलाएं। जिससे लोगों को आने वाले बच्चों को तो पता चले घिनौड़ी भी परिवार का ही सदस्य था हमारे पूर्वजों के साथ उसी घर में रहता था जन्हा हमारे पूर्वज रहते थे।
https://youtu.be/sJEdi3gVEEw
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक