नरेंद्र पिमोली
उत्तराखण्ड के पहाड़ों से विलुप्त हो रहे घराट की संस्कृति को पुनर्जीवित करने और नए रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर और के.बी. सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड, हल्द्वानी के बीच एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इसके तहत विकसित पनचक्की और घराट तकनीक से गेहूं, रागी, मंडुवा, मक्का और मिश्रित अनाजों के आटे का उत्पादन किया जाएगा। पंतनगर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. तेजप्रताप ने कहा कि इस अनुबंध से नये उद्यम स्थापित करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि घराट में उपयोग होने वाले अनाजों की न्यूट्रीशनल वैल्यू को बढ़ाने और उनके बाजारीकरण में विश्वविद्यालय अहम भूमिका निभाएगा। के.बी. सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड, हल्द्वानी के निदेशक एन.के. भट्ट ने बताया कि पनचक्की और घराट तकनीक से निर्मित आटे में पोषक तत्वों की मात्रा बनी रहती है। उन्होंने कहा कि आगामी 5 वर्षों में इस तकनीक के सहयोग से पहाड़ों पर लगभग 1500 लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि जहां भी स्लोप और पानी मिलेगा वहां पर घराट स्थापित किया जाएगा।
दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में गांव-गांव गेहूं पिसाई के उपयोग होने वाले घराट आर्थिकी को बेहतर करने एवं पलायन रोकने में मददगार साबित हो सकता हैं।
घराट न केवल अनाज पीसने, बल्कि आर्थिकी का भी साधन माने जाते हैं। घराट पानी से चलने वाली चक्की है। इन्हें पहाड़ की संस्कृति का प्रतीक माना जाता है, पलाइन रोकने और पहाड़ों पर रह रहे लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए कई योजनाएं बना रही है। कृषि उत्पादन को बढ़ाने की बातें हो रही हैं, परंतु कृषि से ही जुड़े घराटों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक