बीमार लछिमा मर गईं, क्योंकि गांव तक सड़क ही नहीं बनी है,
विकास ही विकास है, बस सड़क और अस्पताल नहीं है!
उत्तराखंड में दो दिनों में दो महिलाओं की खबरें छपीं। हालांकि महिलाओं की मौत की खबरें इस छोटे से राज्य के रहनुमाओं के लिए कोई खास माएने रखती हों ऐसा लगता नहीं है लिहाजा आज हमने सोचा कि क्यों न इन मौतों, की वजहों को आपके ही साथ ही साझा कर लिया जाए।
पिथौरागढ़ के दारमा गांव की रहने वाली अठ्ठावन साल की लछिमा देवी दस जनवरी को दिल का दौरा पड़ने से अपने घर में ही बेहोश होकर गिर पड़ीं। लछिमा देवी जब बेहोश हुईं तो वो रात का समय था और यहीं उनकी जिंदगी पर भारी पड़ गया।
10 जनवरी की शाम पड़ा था दौरा, हायर सेंटर ले जाते समय रास्ते में तोड़ा दम
बंगापानी (पिथौरागढ़)। गांव तक सड़क नहीं होने का खामियाजा एक और बीमार महिला को अपनी जान देकर भुगतना पड़ा। अफोस ये है कि महिला की मौत की खबर बाहर आने में पांच से छह दिन लग गए।
आलम ये है दारमा नाम के इस गांव का, जिस गांव से नौ स्वतंत्रता सेनानी और एक वीर चक्र विजेता हुए, उस गांव तक आठ किमी सड़क तक नहीं पहुंची। आलम दारमा गांव की लछिमा देवी (58) 10 जनवरी की शाम को दौरा पड़ने से घर में बेहोश हो गईं। रात का समय होने और अंधेरा होने की वजह से ग्रामीणों ने सुबह होने का इंतजार किया।
11 जनवरी की सुबह होते ही परिजन ग्रामीणों की मदद से डोली के सहारे महिला को 8 किमी पैदल रास्तों से बंगापानी तक लाए। यहां से महिला को वाहन से 100 किमी दूर जिला अस्पताल पहुंचाया गया। यहां हृदय रोग विशेषज्ञ नहीं होने से प्राथमिक उपचार के बाद महिला को हायर सेंटर बरेली रेफर किया गया लेकिन चल्थी में ही लछिमा देवी ने दम तोड़ दिया।
नहीं ग्रामीणों का कहना है कि अगर उनके गांव तक सड़क होती और जिला अस्पताल में हृदय रोग विशेषज्ञ होता तो लछिमा देवी को बचाया जा सकता था। गांव तक सड़क नहीं होने की वजह से अक्सर गर्भवती और बीमार महिलाओं और बुजुगों को असहनीय पीड़ा सहकर सड़क तक पहुंचना पड़ता है। यहां से 108 मिली तो ठीक वरना निजी वाहन से अस्पताल ले जाना पड़ता है। ऐसे में अक्सर बीमार और बुजुर्ग अस्पताल पहुंचने से पहले की दुनिया को छोड़कर चले जाते हैं। इसके बाद सरकार और शासन-प्रशासन को लोगों का दर्द नहीं दिख रहा है।
बंगापानी (पिथौरागढ़)। गांव के वीर सैनिक दीवान सिंह धामी को जाफना (श्रीलंका) में बहादुरी के
वीर चक्र विजेता, स्वतंत्रता सेनानियों का है गांव
लिए वीर चक्र भी दिया गया था। इसी गांव के नेत्र सिंह, बच्ची सिंह, जैत सिंह, कल्याण सिंह, केशर सिंह, प्रताप सिंह, देव सिंह, तेज सिंह और भगवत सिंह ने आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हृदयरोग विशेषज्ञ तक12 किमी सड़क की जरूरत, स्वीकृत सिर्फ 7.5 किमी :
वर्ष2016 से आलम दारमा गांव के लिए
पुल का निर्माण कार्य कछुआ गति से चल रहा है। गांव के प्रत्येक तोक तक सड़क पहुंचाने के लिए 12 किमी की सड़क की जरूरत है लेकिन स्वीकृत 7.5 किमी ही है। बुजुर्ग को पहुंचाया अस्पताल : आलम-दारमा गांव के ही 79 वर्षीय चंद्र सिंह धामी की तबीयत खराब हो गई। 15 जनवरी को ग्रामीणों ने उन्हें डोली के सहारे अस्पताल पहुंचाया। अस्पताल में डॉक्टर ने चंद्र सिंह धामी को बुखार और टाइफाइड की दिक्कत बताई। ग्रामीणों का कहना है कि कब तक मरीजों को ऐसे डोली के सहारे अस्पताल पहुंचाएंगे।
खबर अच्छी लगी तो शेयर जरूर कर देना, ताकि उत्तराखंड में बैठे नेताओं की आंख खुल जाए,
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक