उत्तरकाशी मे मुर्दों के लिए भी बडा संकट, सीमांन्त जनपद उत्तरकाशी जहां प्रकृति ने अपना खजाना लुटाने मे कोई कोर कसर नही छोडी है यहां गंगा यमुना के मायने सहित प्रकृति ने 90प्रतिशत हिस्सा पेड पोधे ओर वनस्पतियों से विभूषित किया है ओर इन्ही से यहां के लोगों की आजीविका जुडी हुई है ओर लोग प्रकृति का किसी भी प्रकार दोहन नही करते है पर यहां के आम लोगों के साथ दिवंगत होने वाले लोगों के सामने भी आज बडा संकट जंगलात विभाग ने खडा कर दिया है जी हां आज तक आपने पानी का संकट भोजन का संकट विजली का संकट रसोई गैस सहित कहि आपदाओं का नाम आपने सुना होगा पर आज देव भूमी के इस सुन्दर जनपद मे वन विभाग की ओर से बडे संकट से जूझने को विवस होना पड रहा है दर असल जनपद मुख्यालय मे वन विकास निगम के डिपो मे लकडी की कमी हो गयी है जिसके कारण जनपद के मोक्ष घाट पर बने वनविकास निगम के डिपो से शमशान घाट को आपूर्ति की जाने वाली लकडी उपलब्ध नही हो पा रही है साथ ही साथ बढती ठंड से बचाव के लिए जलाए जाने वाले अलाव भीनही जल पा रहे है जिसके कारण जनपद मे रह रहे वेघर लोगों सहित पर्यटकों को भारी परेशानियों से गुजरना पड रहा है बातकरे केदार घाट की तो यहां का आलम इतना ख़राब है कि मूर्दो को अधूरा जलाकर मां गंगा मे विसर्जित करना पड रहा है क्योंकि शव का अंतिम संस्कार करना हमारे धर्म की प्रमुख परंपरा है ऐसे मे वन विकास निगम के डिपो मे लकडी के न होने से अंतिम संस्कार करने मे समस्या उत्पन्न हो रही है निगम की ओर से थोडी बहुत जो लकडी दी जा रही है वह हरी यानी कच्ची है जिसको जलाना मुस्किल है ऐसे मे आधा अधूरा अंतिम संस्कार अधजले शव को मां गंगा मे विसर्जित करना मजबूरी बन गया है जिसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि वन निगम द्वारा कही बार वन विभाग से छापान कर सूखे पेड़ों एवं आवादी के बीच खतरा बने पेड़ों को काटने की अनुमति मांगी गयी है पर पिछले एक साल से वह अनुमति की फाइल देहरादून मे बैठे वनविभाग के अधिकारियों की टेवल से लगातार चक्कर काट रही है ऐसे मे लाट उपलब्ध न होने के कारण वन विकास निगम के पास लकड़ियों की भारी कमी हो गयी है वन विकास निगम के डी एल एम का कहना है कि वन संपदा से भरे इस जनपद मे पहली बार ऐसा संकट खडा हुआ है जिसमें जीवित व्यक्ति से लेकर मृत व्यक्ति तक परेशानी झेलने को मजबूर है वहीं स्थानीय लोगों मे वन विभाग की इस लापरवाही पर गहरा आक्रोश बना हुआ है
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक