क्यों नफरत है नेताओं को गैरसैण में सत्र आयोजित करने से। शीतकालीन सत्र की बात चली और आ गया करण माहरा का बयान ।
सर्दी बरफ जुखाम सरदर्द इन नेताओं को ही होने लगती है। चार दिन गैरसैण में नहीं रह सकते और बातें आसमानी । ये हाल तब है जब उत्तराखंड की जनता इनके मेडिकल के लिए अपना खून पसीना बहाकर टैक्स चुकाती है। इनके आवास इनके वाहनों पर पैसा खर्च करती है।
चार दिन गैरसैण नहीं रह सकते तो किस बात के नेता। अभी इनको घूमने के लिए ठंडे नार्वे स्वीडन हंगरी का कार्यक्रम बना कर दे दो एक विधायक मंत्री ये नहीं कहेगा बहुत ठंडा है अभी नहीं जा सकते। सब उड़ान भर लेगें । लेकिन गैरसैण में इनके नखरीले बयान उत्तराखंड की जनता को मूर्ख बनाने के सिवा और कुछ नहीं। जबकि वहां भी इनके लिए रहने की उत्तम कोटी की व्यवस्था नहाने के लिए गर्म पानी खाने के लिए मीट मटन हर तरह की व्यवस्था होती है। पर इन्हें गांव में जाने से एलर्जी है। सबके देहरादून में बंगले नुमा मकान है। सब देहरादून में ही रहना चाहते हैं। इन नेताओं की कारगुजारी से ही नौकरशाह भी मजे लूटते हैं । जब ये सफेद कुर्ते वाले ही गैरसैण नहीं जाएंगे तो उन्हें क्या कोई कंडाली मार रहा है। ध्यान रखिए हमने नौकरशाहों को नहीं चुना हमने इन नेताओं को चुना है। इनका सीधा दायित्व जनता के प्रति है। इनका गैरसैण न जाने का बहाना गंदी सियासत जनता के प्रति बेअदबी , और शहीदों का अपमान है।
जो भी नेता गैरसैण जाने से बचने की कोशिश करता दिखे वो हमारे नेता हम पहाड़ के लोगों के लिए कलंक हैं।
कलम -: वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक