पहाड़ पर महिलाओं की सहभागिता के बगैर घर, खेती, बागवानी, पशुपालन की कल्पना नहीं की जा सकती। जंगल से घास, लकड़ी लाने के साथ ही बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, कलेवा, भोजन की व्यवस्था तो मातृशक्ति के जिम्मे है।
आज की यह छोटी सी वीडियो बहुत कुछ बयां करती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गांवों में आज भी महिलाएं हल नहीं जोतती है। रोजगार के लिए पुरुषों को घर से बाहर निकलना ही पड़ता है और गांव की पुश्तैनी जमीन को भी बंजर नहीं छोड़ सकते हैं यही हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है लेकिन मैं मानती हूं। हर चुनौती से लड़ा जा सकता है।चमोली की समाज सेविका कमला रावत ने अपने छेत्र की सभी महिलाओं से कहा है बेझिझक कृषि विभाग से संपर्क करिए और अपने लिए ट्रैक्टर बुक कराए और अपनी पुश्तैनी जमीन को उपजाऊ बनाएं यही अपने पूर्वजों के लिए सबसे बड़ा समान है।
देवभूमि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में गांवों से
पलायन को रोकना आज भी सबसे बड़ी चुनौती है। पलायन की वजह से ही गांव के गांव खाली हो रहे हैं उपजाऊ भूमि फिर बंजर तो होगी ही करण एक नहीं अनेक है शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार और जिस प्रकार प्राथमिक विद्यालयों तथा जूनियर विद्यालयों में बच्चों की जनसंख्या दिन प्रतिदिन कम हो रही है। वह बहुत चिंता की बात है आखिर हर कोई क्यों नहीं प्राथमिक विद्यालयों में अपने बच्चों का पढ़ाना नहीं चाहता है प्रदेशभर से खबरें आती जाती रहती है सरकारी विद्यालयों में कहीं बच्चे हैं तो अध्यापक नहीं है अध्यापक हैं तो बच्चे नहीं है यह सबसे बड़ी चिंता की बात है। प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा स्तर को जब तक शहरी विद्यालयों के अनुरूप नहीं सुधारा जाएगा तब तक गांव के सरकारी विद्यालयों से बच्चों की जनसंख्या कम होती रहेगी यह एक सच्चाई है इस ओर सरकार को गंभीरता से विचार करना ही होगा गांवों को रोड कनेक्टिविटी के साथ-साथ स्वास्थ्य और रोजगार को भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
सोशल मीडिया आज अच्छा माध्यम है जिसे हम कहीं से भी अपनी बात को आसानी से देश प्रदेश में शासन-प्रशासन तथा जनप्रतिनिधियों तक पहुंचा सकते हैं
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक