वक्त नहीं बदला होता तो हजब्बा को शायद यह देश कभी नहीं जान पाता। फल बेचते थे ।एक अंग्रेज ने फल खरीदने के लिए अंग्रेजी में कहा तो समझ नहीं पाए। बस ठान ली कि मैं नहीं पढ़ा तो क्या हुआ आगे गांव के बच्चों के लिए स्कूल खोलूंगा। आज उस स्कूल के बच्चे अंग्रेजी में बोलते हैं तो हजब्बा का मन बाग बाग हो जाता है।
सम्मान के असली हकदार यही है। तुलसी गौड़ा भी हैं जिन्होंने 30 हजार से ज्यादा वृक्ष लगाए हैं।
इस देश में झूठे सम्मान बिकते रहे कभी अरुधती कभी राजदीप सरदेसाई कभी बऱखा को पद्म सम्मान मिेल। केवल उच्च स्तरीय चाटूकारिता के लिए। रैकेट और राजनीतिक दलों के लिए खुला ऐंजेडा चलाने के लिए । खुशवंत सिंह पर भी देश समीक्षा करेगा कि क्या वह यह हक रखते थे जितना उन्हें सम्मानों और पदों के पोल पर चढ़ाया गया। और भी हैं कई।
वास्तव में सम्मान वहां होना चाहिए जहां समाज के लिए वास्तव में काम होता हो। हजब्बा को यह पता नहीं था कि एक दिन वह राष्ट्रपति के हाथों पद्म पुरस्कार पाएंगे। लेकिन यह दिन आया। जिसने भी उनके नाम की सिफारिश की उनके लिए साधूवाद
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक