देहरादून बड़ी खबर -: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का वोटर लिस्ट से नाम गायब…

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देहरादून बड़ी खबर

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का वोटर लिस्ट में नहीं है नाम

निकाय चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री का नहीं है नाम

वार्ड 76 ओर वार्ड 58 में भी नहीं है पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत नाम

लोकसभा चुनाव में देहरादून के वार्ड 76 में किया था मतदान

सुबह से नाम खोजने के बावजूद भी नहीं मिला पूर्व मुख्यमंत्री हरीश का नाम

हरीश रावत ने कहा की भाजपा नाम कटवाने में सबसे आगे

मैं निर्वाचन आयोग को नहीं दूंगा दोष

#मेरा_मेयर_मेरा_चेयरमैन-हरित सोच (पार्ट-2)
उत्तराखंड की नगर पंचायतें, नगर पालिकाओं और नगर निगमों में वास करने वाले उत्तराखंड के भाई-बहनों आप अपनी सरकार के लिए जो आपकी सबसे निकट की सरकार है, उसके लिए मतदान करने जा रहे हैं। यह अवसर है आप सबके सामने कि एक सुघड़, स्वस्थ और स्वच्छ हरित पर्यावरणीय सोच रखने वाले उम्मीदवार को विजयी बनाने की। आप बहुत निकट से अपने सभी मत याचकों को जानते हैं। देखिये कि उनमें हरित पर्यावरणीय सोच है या नहीं? देखिए क्या उनके पास आपके बाजार, नगर, शहर का जो भी नामकरण आपके निकाय के साथ जुड़ा हुआ है उसको सुव्यवस्थित बनाने की सोच है? क्या उनके पास कोई ऐसी कार्य योजना है जिस कार्य योजना के क्रियान्वयन से आपका जीवन थोड़ा और सरल व सजग हो सके? क्या दून में आपके निकाय की क्षमताओं में वृद्धि की क्षमता है? मैंने इसी मापदंड से उम्मीदवारों को तोला है। खैर अब निर्णय आपके हाथ में है। आपका पुराना सेवक होने के नाते मैंने अपने दिल और सोच की बात आपके सामने रख दी है।
मेरा मेयर कैसा हो, मेरा चेयरमैन कैसा हो? इस पर मैं अपने दो दोस्तों से बातचीत की तो एक बात से दोनों सहमत हैं कि मेयर हरित सोच वाला होना चाहिए। ग्रीन आइडियाज के साथ हमारी नगरीय संवेदनाओं को समझने वाला हो। लेकिन मेरा मन कहता है कि मेरा मेयर, मेरा चेयरमैन ऐसा होना चाहिए कि वह साल में कम से कम एक बार मेरे मोहल्ले में आकर मुझसे यह कहे कि हेलो अंकल आप कैसे हैं, यदि हरीश अंकल कह दे तो और बढ़िया है। कभी त्योहारों में, राष्ट्रीय पर्वों में मेरे अड़ोस-पड़ोस में झंडा फहराते या उत्सव में भागीदारी करते हुए दिखाई दे। मेरा मन यह कहता है कि इस बुढ़ापे में मेरे पड़ोस में कहीं ऐसा एक पार्क बना दे, जहां मैं अपने जैसे दूसरे बूढ़े होते लोगों के साथ बैठकर के गुनगुनी धूप का आनंद ले सकूं या ठंडी हवा का आनंद ले सकूं। कुछ दुःख-सुख बांट सकूं व गपशप कर सकूं। वहां कुछ ऐसे झूले या बच्चों के खेलने के साधन बना दे जिसमें मैं अपने पोते या अपनी नातिनी की उंगली पड़कर वहां ले जा सकूं और उन्हें खेलता हुआ देख सकूं। यदि मेरी सोच का मेयर उम्र दराज लोगों के सुबह-शाम की सैर के लिए कोई ट्रैक या सड़क निर्धारित कर दे तो मैं उस मेयर की मन ही मन आरती उतारना चाहूंगा।
मेरे मेयर-मेरे चेयरमैन से अपेक्षाकृत वृद्ध महिलाओं से लेकर स्कूल जाने वाली छात्राओं, घर में ग्रहणी के रूप में घर का संचालन करने वाली लक्ष्मी की भी कुछ अपेक्षाएं अपने मेयर या चेयरमैन से होगी। बहनें मंदिर जाती हैं, परिवार के कल्याण की कामना के लिए। वह इतनी तो अपेक्षा करती हैं कि मंदिर में उनको स्वच्छ पानी मिल जाए या एकाध वॉशरूम वहां हो और कुछ बेंचेज हों जिन पर बैठकर वह जलाभिषेक करने या पूजा करने के लिए प्रतीक्षा कर सकें। भजन-कीर्तन के लिये वह ढोलक, मंजीरा तो अपना ले आएंगी, मगर उनके फर्श पर बैठने के लिए चटाई का इंतजाम तो उनका प्रतिनिधि करे। स्कूल जाने वाली बच्चियों के लिए बस स्टैंडों पर अलग से बैठने की व्यवस्था और प्रतीक्षालय होने चाहिए। शहर में बाजारों के निकट शौचालय और महिला शौचालय, दोनों की व्यवस्था आवश्यक है। बहुधा, घर के लिए खरीद-फरोख्त का काम महिलाएं करती हैं। शहरीय सरकार को बहुत सारी वस्तुओं की आवश्यकता होती है। वह प्लास्टिक की चीजें खरीदने के बजाय या खुले बाजार से क्रय करने के बजाय, उन वस्तुओं को महिला समूहों से खरीदें, जैसे ट्री गार्ड अर्थात पेड़ के चारों तरफ बांस की खपच्चियों का वृक्ष रक्षक (टी गार्ड), एक उदाहरण के लिए कह रहा हूं। हमारी निम्न आय वर्ग की बहनें हैं उनको अपने ही पड़ोस में कुछ आजीविका मिल जायेगी। यदि मेयर व चेयरमैन कृपालु हो तो महिलाओं के लिए अलग पार्कों की भी व्यवस्था होनी चाहिए, जहां खुलकर के घंटा, दो घंटा वहां बिता सकें और कुछ हल्के-फुल्के व्यायाम व महिला खेल, खेल सकें। हमारी बच्चियां आजकल शारीरिक दक्षता की तरफ बहुत ध्यान दे रही हैं, पुलिस में भर्ती होना चाहती हैं, आर्मी में भर्ती होना चाहती हैं, उनके लिए पृथक प्ले ग्राउंड शहर और नगर में बने यह भी हमारी बहनों के दिल के कोने में कहीं न कहीं अपने प्रतिनिधियों से आकांक्षा रहेगी।
मेरा शहर-मेरा नगर, मेरा मेयर-मेरा चेयरमैन, युवा आकांक्षा को समझे। मैं युवा हूं। मेरे इस शहर या नगर में कुछ ऐसे खेल के मैदान हों, जहां मैं दौड़ सकूं, शारीरिक प्रशिक्षण कर जीवन की आगे की चुनौतियों के लिए अपने को तैयार कर सकूं। मेरा शहर इतना हरित हो कि मैं स्वस्थ सोच और स्वस्थ वायु के साथ अपने जीवन को सुदृढ़ कर सकूं। मेरा मेयर, मेरा चेयरमैन कभी-कभी हमारे बीच में आए। युवा कंसर्ट आयोजित करे, गीत और संगीत के साथ एक परिवार के मुखिया और नेता के तौर पर हमें अपनत्व दे। हमारा मेयर, हमारा चेयरमैन ऐसी शिक्षण संस्थाएं संचालित कर सकते हैं जो शिक्षण संस्थाएं हमें दक्षता प्रदान करे। मैं गरीब घर का बेटा हूं, बेटी हूं तो मुझे भी वही एजुकेशन का स्तर मिल सके, जो प्राईवेट स्कूल में समृद्ध परिवारों के बच्चों को मिलता है। मेरे लिए दक्षता कार्यक्रम भी आयोजित कर सकते हैं। मैं यह भी उनसे छोटी सी अपेक्षा करता हूं कि जहां मेरा खेल का मैदान है, वहां कहीं चेंजिंग रूम भी हो, जहां खेलने के बाद या पहले मैं वाॅश कर सकंू। मैं यह भी सपना देखता हूं कि मेरे नगर में, मेरे शहर में जो भी खाने को बिक रहा है उसका स्तर अच्छा हो। मेरे शहर, मेरे नगर में दोयम दर्जे का खान-पान न बिकता हो, मेरे घर के कूड़े को मैं अपनी मां के साथ बैठकर अलग-अलग थैलियों में रखूं और उन थैलियों को उठाने के लिए कोई स्वयंसेवी संस्था या कोई और संगठन खड़ा करे जो मेरे घर के कूड़े का निस्तारण करे, मेरे घर की गली साफ हो और यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें टैक्स नामक छोटी सी प्रोत्साहन नामक छूट मिले। मैं मतदान करूंगा, मगर अपने सुंदर भविष्य की कल्पना के साथ करूंगा। मेरा मन कहता है कि मेरा चेयरमैन या मेरा मेयर, हम युवाओं के बीच आकर हमें नशे की लत से सावधान करे और हमें आमंत्रित करे कि आओ हमारी म्युनिसिपल लाइब्रेरी में अध्ययन करो और वहीं कहीं एकांत में एक ऐसा मेज रखें जिनके सहारे खड़े होकर हम अखबारों का वाचन कर सकें और वहां अंग्रेजी व हिंदी के अखबार रखें जाएं ताकि उनको जोर-जोर से पढ़कर के हम अपनी बोलने की क्षमता की वृद्धि कर सकें।
मैं सफाई कर्मी हूं, मैं पर्यावरण मित्र कहलाता हूं। मेरी भी कुछ आकांक्षाएं हैं, भावनाएं हैं, आवश्यकता हैं। मैं अपनी नगरीय सरकार से क्या अपेक्षा करता हूं? मेरी पहली अपेक्षा रहती है कि मेरे काम को स्थाई करे। आप यदि स्थाई नहीं कर सकते हैं तो संविदा कर्मी के तौर पर भी मुझे इतना वेतन तो दीजिए कि मैं अपनी आजीविका का पालन कर सकूं। मुझे मेरे काम की सुरक्षा दीजिए। आप मशीन का भी उपयोग करना चाहते हैं, उसके लिए आप किसी ठेकेदार के बजाय मुझे ट्रेनिंग क्यों नहीं देते हैं? मुझे ट्रेनिंग दीजिए मैं वह काम करूंगा। आप तो मुझे ग्लब्ज और मास्क तक नहीं देते हैं, मुझे सीवर लाइनों में उतारते हैं। मुझे कोई आॅक्सीजन सपोर्ट नहीं देते हैं। मैं जान जोखिम में डालकर काम करता हूं, मैं मरता हूं तो मेरे बच्चों को आप कोई बीमा लाभ या मृतक के आश्रितों को मिलने वाला लाभ नहीं देते हैं क्योंकि मैं सफाई कर्मी हूं। मगर याद रखिए आज मैं वोटर भी हूं, एक वोट आपका है एक वोट मेरा है। मैं सोचता हूं कि हर वर्ष न सही, दो-चार वर्ष में ही सही, एक 5 साल के कार्यकाल में ही सही कभी कुछ संख्या में तो मेरे साथी, मेरे पर्यावरण मित्रों का स्थाईकरण हो सके या सीनियरिटी के हिसाब से हमें एडहॉक नियुक्ति दी जाय। दूसरी अपेक्षा यह रहती है कि परिवर्तन के बाद जब आपको सबका मानदेय बढ़ाने की याद आती है तो मेरा मानदेय बढ़ाने की याद क्यों नहीं आती है? 2014 में बढ़ा उसके बाद सब मुझे भूल गए। 2015 में मेरे कुछ भाइयों को सीनियरिटी के हिसाब से स्थाईकरण का लाभ मिला, उसके बाद सब भूल गए। इस बार मेरा मन कहता है कि मैं भी आपको भूलूं, क्योंकि आप मेरे को याद नहीं करते हैं। आपके नगर पालिका या नगर निगम में अवैध कब्जेदारों के लिए तो गुंजाइश है, मगर मुझे किसी जमीन के टुकड़े पर क्यों नहीं बसाते हैं? आपको मेरी जरूरत है, मेरे बिना आपका शहर, नगर साफ नहीं हो सकता है, लेकिन आप मुझे जमीन का एक टुकड़ा भी आवंटित नहीं करना चाहते हैं। मेरे लिए आवास बनाने की कोई योजना क्रियान्वित क्यों नहीं होती है? आप हजार करोड़ से ज्यादा रुपया हर वर्ष ठेके के कामों में व्यय कर रहे हैं, कूड़ा उठाने के काम से लेकर दूसरे कामों में, यहां तक की बिजली के बल्ब बदलने के काम में भी, मुझे आप थोड़ा सी ट्रेनिंग दीजिए, क्या मैं यह काम नहीं कर सकता? मैं अपने मेयर व अपने चेयरमैन से यह अपेक्षा करता हूं कि वह मेरे विषय में कुछ सोचता हो। उसके कदम इस दिशा में काम करने के लिए उठें, सारी महिलाओं के लिए मैटरनिटी लीव हैं, उनके महिला अधिकार हैं बहुत अच्छी बात है, लेकिन मेरी पत्नी, मेरी बेटी भी तो महिला है, वह प्रसव के आखिरी-आखिरी दिनों तक भी झाड़ू लेकर आपके शहर, आपके नगर को साफ करती है। बहुत दर्द हैं, मैं उम्मीद करता हूं कि इस चुनाव में ये दर्दों की झलक मेरे चेयरमैन, मेरे मेयर के 5 साल के भविष्य की सोच व कार्ययोजना मंे दिखाई देवें। नगरीय व्यवस्था के स्थाई भाव मलिन बस्तियों की भी तो कुछ अपेक्षाएं होंगी?
मैं मलिन बस्ती हॅू। शहरीय व्यवस्था की स्थाई भाव की भी कुछ अपेक्षाएं हैं। मेरा सर्वेक्षण हुए लंबा वक्त बीत गया है, बड़ा अध्ययन हुआ, एक वरिष्ठजनों की कमेटी बनी और उसकी संस्तुति के आधार पर मलिन बस्तियों के नियमितीकरण का वर्ष 2016 में कानून बना। देहरादून में कुछ सौभाग्यशाली लोगों को मालिकाना हक के दस्तावेज भी मिले। सरकार बदली तो तब से मेरा भाग्य भी अनिश्चितता के झूले में झूल रहा है, कभी समाचार आता है कि मलिन बस्तियां टूटेंगी फिर कुछ समय के लिए अध्यादेश के माध्यम से मेरे सर पर लटकी हुई तलवार जरा दूर हटा दी जाती है, लेकिन लटकी जरूर रहती है। मुझे राजनीतिक दल, एक जीवन समझने के बजाय वोट बैंक समझते हैं। मैं, शहरीय व्यवस्था की आवश्यकता हूं। शहरीय मध्यम वर्ग को अपने जीवन के संचालन के लिए और नगरीय व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालन के लिए जिन मददगारों की आवश्यकता होती है, वह सब मेरे ही आगोश में रहते हैं, उनकी भी अच्छे जीवन की कुछ आंकाक्षाएं है। एक बार लगा कि हमारी वह आकांक्षा पूरी हो रही है, कुछ शहरों में रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का काम शुरू हुआ, देहरादून में भी ब्रह्मपुरी से रिस्पना के उद्गम की ओर रिवरफ्रंट डेवलपमेंट का काम प्रारंभ हुआ और कई भूखंड निकाले गए जिनमें मुझे लगा कि मेरे आगोश में रहने वालों को ही बसाया जाएगा। मैं मलिन नहीं रहना चाहती हूं, मगर मैं कुलीन भी नहीं हो सकती हूं। जितना विलंब होगा उतना ही कुछ और लोग भी आते जाएंगे, कुछ जमीनों पर कब्जा करने के नाम पर, कुछ नदियों के नाले-खाले में कब्जा करने के नाम पर और ऐसे सारे दोष मेरे सर मड़े जाएंगे। जबकि मैंने कहा न कि मैं तो नगरीय व्यवस्था की आवश्यकता हूं। कुछ नये शहर व बाजार हैं, जिन्हें नगर पंचायत का दर्जा मिल रहा है, वह प्रारंभ से ही नगरीय व्यवस्था के रूप में विकसित हो रहे नए वर्ग की आवश्यकता के सहायकों के लिए कुछ जमीनें निकाल करके रखें, कुछ सफाई कर्मियों के लिए और कुछ मेरे जैसे सहायकों के लिए जिनमें झाड़ू-पोछा से लेकर के घरों में काम करने वाले फिटर, माली से लेकर बहुत सारे मेरे भाई बंधु सम्मिलित हैं, उनको कैसे भविष्य की आवश्यकता के अनुरूप सुव्यवस्थित तरीके से बसाया जाए, इसकी समझ रखने वाले को ही मैं अपना प्रतिनिधि चुनूंगा।
मैं उम्मीद करता हूं कि इस स्थानीय निकायों के चुनाव में मलिन बस्ती के लोगों को मालिकाना हक मिले और मलिन बस्तियों को व्यवस्थित शहरीयकरण का हिस्सा बनाया जाए, उस दिशा में सोच रखने वाले, हरित सोच के लोगों को लोग चुनें। मैं अपने आगोश में रहने वाले भाई-बहनों से भी कहना चाहता हूं कि ऐसे लोगों को चुनें जो भविष्य में आपकी आवाज बनें और आपकी मदद में खड़े हो सकें। आपको एक सुव्यवस्थित जिंदगी देने में मददगार हो सकें।
मैं एक आम शहरीय नागरिक हूं। मुझे काम करने के लिए और एक स्वस्थ जिंदगी जीने के लिए एक स्वस्थ व हरित वातावरण की आवश्यकता है। शहर में न केवल पार्क हों। जहां बल्कि सड़कों के किनारे वृक्ष भी हों जो खाली स्थान हैं उनमें वृक्षों के अच्छे झुरमुट हों। नदियों के नाले-खाले हैं उनमें लोग अतिक्रमण कर शहर के पर्यावरण को बिगाड़ें, उससे पहले मेरी इच्छा रहेगी कि मैं उसमें सामूहिक वृक्षारोपण में भाग लूं। हर साल मेरा मेयर-मेरा चेयरमैन, मेरे शहर व मेरे नगर में सामूहिक वृक्षारोपण के कार्यक्रम आयोजित करें, जिसमें अपने पड़ोस के ऐसे एक कार्यक्रम में मैं भी भाग ले सकूं। जिन वृक्षों को लगाया जाए उनकी रक्षा हो। वृक्ष भले ही बड़े शहर में एक वर्ष में 50 हजार ही लगें, लेकिन उनकी रक्षा हो। हरेले के कार्यक्रम में राज्य में लाखों वृक्ष रोपित होते हैं, यदि 10 प्रतिशत भी उन रोपित वृक्षों में से जीवित रहते तो आज राज्य के पास हरे सोने का बड़ा भंडार होता। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। एक पर्यावरण संवेदनशील नगरीय व्यवस्था मेरी आकांक्षा है। मैं ही उत्तराखंड राज्य हॅू, हरियाली मेरे राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पहचान है। मैं नगरीय व्यवस्था के संचालन के लिए सरकार चुन रहा हॅू। मैं इस वक्त हरित सोच वाले प्रतिनिधि चुनकर ही अपनी इस विलक्षण पहचान को समृद्ध कर सकता हॅू। हरीश रावत

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