चिपको आंदोलन विशेष : जंगल को बचाने के लिए दुनिया का अनूठा संघर्ष ,हर्यां डाला कटेला दु:ख आली भारी, रोखड व्हे जाली जिमी-भूमि सारी, आज की पीढ़ी के लिए यह खबर महत्वपूर्ण है 

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आज पर्यावरण की रक्षा के लिए सबसे बड़े और अनोखे ‘चिपको आंदोलन’ की वर्षगांठ है। आज के दिन 1974 में चमोली की रैणी गाँव की महिलाओं ने गौरा देवी जी के नेतृत्व में पेड़ों को बचाने के लिए अन्य महिलाओं के साथ ये आंदोलन प्रारंभ किया था ऐसी मातृ शक्ति को शत शत नमन।

पचास वर्ष पहले चमोली जिले के रैणी गांव में वनों को कटने से बचाने के लिए एक ऐसे आंदोलन ने जन्म लिया जो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर गया। गांव की गौरा देवी की अगुवाई में ग्रामीण महिलाओं ने पेड़ों पर अंग्वाल (चिपको) के जरिए पेड़ों को बचाने और पर्यावरण संरक्षण का अनोखा मंत्र दिया, जिसके बाद पूरी दुनिया महिलाओं के इस आंदोलन को चिपको के नाम से जानने लगी।

कटते जंगलों को बचाने और लोगों को जल, जंगल, जमीन से जोड़ने के लिए शुरू हुआ यह आंदोलन चिपको के नाम से प्रसिद्ध हुआ। चिपको आंदोलन रैणी के जंगलों में 26 मार्च 1973 को हुआ था। आज भी रैणी गांव के ग्रामीणों में अपने जंगल को बचाने के लिए वहीं जुनून और जज्बा देखने को मिलता है।

चिपको आंदोलन के ये थे गीत–
चिपका डाल्युं पर न कटण द्यावा,
पहाड़ों की संपति अब न लुटण द्यावा।
मालदार ठेकेदार दूर भगोला,
छोटा- मोटा उद्योग घर मा लगोला।
हर्यां डाला कटेला दु:ख आली भारी,
रोखड व्हे जाली जिमी-भूमि सारी।
सूखी जाला धारा, मंगरा, गाड-गधेरा,
कख बीटीन ल्योला गोर भेंस्यूं कु चारू।
चल बैंणी डाली बचौला, ठेकेदार मालदार दूर भगोला..।

गौरा देवी के एक इशारे पर पेड़ों से चिपक गई थीं महिलाएं
26 मार्च 1973 को साइमन एंड कमीशन के मजदूर रैणी गांव में अंगू और चमखड़ीक के करीब 2500 पेड़ों के कटान के लिए पहुंचे। संयोगवश इसी दिन गांव के पुरुष भूमि के मुआवजे के लिए चमोली तहसील गए हुए थे। सुबह नौ बजे साइमन कमीशन के मजदूरों ने आरी और कुल्हाड़ी लेकर जैसे ही रैणी गांव के जंगल पर धावा बोला तो महिलाएं हो-हल्ला करने लगीं, लेकिन कुछ नहीं हुआ।

इसी दिन गोपेश्वर स्थित सर्वोदय केंद्र से भौंस-मंडल के जंगल के अंगू के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए चिपको अंग्वाल्टा शब्द आंदोलनकारियों के बीच आया था और उसी दिन वहां मौजूद पूरे जिले के सामाजिक कार्यकर्ताओं, मातृ शक्ति और जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में मंडल के जंगल में अंगू के पेड़ों के कटान के लिए पहुंची साइमंड एंड कंपनी से पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों पर चिपकने के एक्शन की रणनीति पर सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया था।

इस बैठक में लिए गए निर्णयों के आधार पर सीधे एक्शन के रूप में चिपको आंदोलन की रणनीति बनी और मंडल घाटी के गौंडी में 25 अप्रैल को आलम सिंह बिष्ट की अध्यक्षता में पूरे इलाके के लोगों की बैठक हुई, जिसके बाद चिपको आंदोलन फाटा और फिर रैणी गांव से होते हुए पूरे देश में फैल गया।

फाटा और फिर रैणी गांव होते हुए पूरे देश में फैला आंदोलन
वर्ष 1970 के दशक में गढ़वाल के रामपुर-फाटा, मंडल घाटी के भोंस, पांडर बासा से लेकर जोशीमठ की नीती घाटी के रैणी गांव में हरे भरे जंगलों में लाखों पेड़ों को काटने की अनुमति शासन और सरकार की ओर से दी गई तो इस फरमान ने पहाड़ के गांवों को झकझोर कर रख दिया था। एक अप्रैल 1973 का दिन चिपको आंदोलन का स्वर्णिम तिथियों में एक है।

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