रणबांकुरों की भूमि च या
फिर आलो क्वी विपिन रावत
रण सजालो बेरी भगालो
फिर आलो क्वी विपिन रावत
आंखो मां छन हमरा आंसू
पर गाथा या गौरव की च
जय कुमों जय गढदेश
भूमि या विपिन रावत की च
सेण से निकली पहुंची नेफा
तू देश की रक्षा करदू रे
कन छे योद्धा, कन छे फौजी
बाटों बाटों ते देखदू रे
बालाकोट कू वो धमाको
तेरी याद दिलाणू च
ऊंचा शिखरों कू तू योद्धा
यू हमरु अपणु गौरव च
थड्या, रासों मां वो तेरो ठुमकणो
गों गों का बाटों मां वो तेरो चलणो
परदेश से लौटा गौं वो तेरो बोलणो
वर्दी मा सीडीएस वो तेरो सजणो
रणबांकुरों की भूमि च य
फिर आलो क्वी बिपिन रावत
रण सजालो बेरी भगालों
फिर आलो क्वी विपिन रावत
सीनियर पत्रकार वेद विलास उनियाल द्वारा रचित यह कविता
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक