तिमुंडया मेला नृसिंह मंदिर जोशीमठ।
देवभूमि उत्तराखंड में अनेकों परंपराएं हैं..ये परंपराएं किसी के लिए गहन आस्था का केंद्र हैं.किसी के लिए आंडबर, तो किसी के लिए आश्चर्यचकित कर देने वाली परंपराएं. जिज्ञासु समय समय पर इन परंपराओं के पीछे छुपे समाज विज्ञान को लेकर रिसर्च भी करते रहे हैं.
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बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पूर्व जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर परिसर में हर साल आयोजित होने वाला तिमुंडया वीर मेला शनिवार को संपन्न हुआ.
परंपरा अनुसार बदरीनाथ मंदिर के कपाट खोलने से एक सप्ताह पूर्व किसी भी मंगल या शनिवार को यह पारंपरिक धार्मिक आयोजन किया जाता है.. इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य बदरी नाथ यात्रा की कुशलता एवं समस्त क्षेत्र में खुशहाली की कामना होती है..आयोजन की मुख्य विशेषता यह है की तिमुंडया वीर के पशवा पर देवता अवतरित होता है. कहा जाता है कि वह एक बकरी का मांस भक्षण करता है.. इसके अलावा चार मन चावल, गुड आदि भी आहार में लेता है..
तिमुंडया को दुर्गा माता का वीर एवं क्षेत्र का लोकपाल माना जाता है.
श्री बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पूर्व प्रतिवर्ष जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर परिसर में आयोजित होने वाला तिमुंडया वीर मेले का आयोजन हुआ।उल्लेखनीय की बदरीनाथ मंदिर के कपाट खोलने से एक सप्ताह पूर्व किसी भी मंगल या शनिवार को यह प्राचीन एवं पारंपरिक धार्मिक आयोजन किया जाता है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य बद्रीनाथ यात्रा की कुशलता एवं समस्त क्षेत्र में खुशहाली के लिए किया जाता है।
इस कार्यक्रम को देव पुजाई समिति जोशीमठ के सहयोग से किया जाता है। इस धार्मिक आयोजन की मुख्य विशेषता यह है की तिमुंडया वीर के पशवा पर देवता अवतरित होता है । वह एक बकरी का मांस भक्षण करता है। इसके अलावा चार मन चावल, गुड आदि भी आहार में लेता है।
तिमुंडया को दुर्गा माता का वीर एवं क्षेत्र का रक्षक कहा जाता है।
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक