कार्तिक पूर्णिमा के दिन कत्युर घाटी के दूरस्थ क्षेत्र गैरलेख के लिंगनाथ मंदिर में लगा भव्य मेला हर वर्ष की भांति इस साल भी लिंग नाथ देवता के मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना की गई, यहां पर लिंग नाथ को मक्खन और दूध का चढ़ावा चढ़ता है, इस मंदिर में पूरे कत्युर घाटी से अधिक से अधिक मात्रा में भक्त आते है, और लिंग नाथ देवता को दूध मक्खन आदि चढ़ाया जाता है, लोगों द्वारा इस मंदिर में पकवान भी बनाये जाते है ये मंदिर गरूड़ से 20 किलोमीटर की दूरी मै है, पहले लोग पैदल जाते थे, आज सिमशाल तक सड़क बन जाने से लोंगो को आने जाने अच्छी सुविधा मिल चुकी है, फिर भी मंदिर तक पहुंचने मै 4 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई से पैदल जाना पड़ता है, इस मंदिर में जो भी भक्त पूजा करने जाते है,भगवान उनकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं, आज के दिन जिन लोगों की गाय भैंस दूध देती हैं,वो लोग यहां दूध, मक्खन के साथ साथ दूध से बनी सामग्री खीर,दूध से बनी अन्य चीज का भोग लगाते हैं, इस मंदिर में पाठ कर रहे पंडित बताते की इस मंदिर मै वर्षो से पूजा पाठ होती हैं, और दूर दूर से लोग यहां पूजा पाठ करने आते है
क्या है देवता की मान्यता…
कत्यूर घाटी के ऊंची पहाड़ी पर स्थित
द्यो-ध्यौनाई/रिद्दी-सिद्दी देने वाले दूधाधारी लोक देवता…
कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ कत्यूर घाटी के लोगों द्वारा अपने दुधारू पशुओं का दूध/नौणी (मक्खन) चढ़ाया जाता है और घर में सुख शांति हेतु लिंगनाथ देवता की ब्राह्मणों से पूजा पाठ करवाकर भोग लगाया जाता है।…
कहते हैं कि बानणा खत्ते (धुर) मेंं रह रहे एक गौपालक की गाय रोज पहाङी पर जाकर अपना दूध लिंग पर चढा आती थी।
रोज रोज ब्याई गाय द्वारा दूध न देने से गाय पालक को शक हुआ कि कहीं कोई चुपचाप उसकी गाय दुह कर तो नही ले जाता है। अगले दिन गौपालक गाय का पीछा करता है और देखता है कि गौ थूली बेला के समय गाय पहाड़ की चोटी पर जाती है वहां एक लिंगाकार पाषाण के उपर गाय का दुग्ध अपने आप निकल रहा है।
वह गौपालक अचम्भित रह गया।
उसी रात लिंग देवता उसके स्वप्न में आकर बताते हैं कि वे धौ धिनाई के देवता हैं इस स्थान पर मेरा थान स्थापित करें और जो भक्त सच्चे मन से सौंण माह में दूध दही नौंणी से भोग लगायेगा उसके घर में धिनाई पाणी का भरपूर भनार रहेगा।
पशुधन को स्वस्थ रखने तथा घर में हमेशा द्यो-ध्यौनाई की भरपूर भनार का वर मांगा जाता है।…
यहाँ दराथी, घूपेडी, चिमटा, त्रिशूल, घण्टी आदि चढ़ाये जाते हैं।…
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक