बागेश्वर में एक गांव ऐसा है जहाँ घर के दरवाजे पूरे नहीं खुलते हैं.
आप घर के अंदर से एक कुर्सी भी बाहर नहीं ला सकते हैं और ना ही घर के अंदर ले जा सकते हैं.जी हां बागेश्वर से 50 किमी की दूरी पर एक खूबसूरत गांव सेरी, जहाँ से हिमालय का अद्भुत नजारा दिखता है. इस खूबसूरत गांव को ना जाने किसकी नज़र लगी की पूरा गांव आपदा की चपेट में आ गया है.
गाँव में कोई घर ऐसा नहीं है जिस पर दरारे नहीं है. सेरी गांव 2002 से लगातार धंस रहा है. गांव क्यों धंस रहा है इसका जवाब ना ग्रामीणों के पास है और ना ही प्रशासन के पास है.यहां रहने वाले ग्रामीण डर के साये में अपने दिन गुजार रहें हैं.सेरी गांव के निवासी लक्ष्मण धामी(50) गांव में ही एक छोटी मोटी दुकान चलाते हैं.
उन्होंने काफ़ी मेहनत से एक घर बनाया. जो कुछ ही सालों में जमींदोज हो गया. वो स्थान छोड़कर उन्होंने फिर थोड़ी दूरी पर एक और घर बनाया, यहां भी बदकिस्मती ने उनका साथ नहीं छोड़ा ये घर भी कुछ समय में खंडहर हो गया.ग्रामीण धामी अब अपनी छोटी सी दुकान में रहने को मजबूर है, दुकान में छोटी सी जगह होंने के कारण उनके घर का अधिकतर सामान खंडहर हुए मकान में खराब हो रहा है. अब सालों से वो सरकार और प्रशासन से मदद का इंतजार कर रहें हैं.
सेरी में ग्रामीणों के घर हर दिन धरती में समाने के लिये आतुर हैं.यहां हर साल जमीन का एक हिस्सा लगातार खिसक रहा है और ग्रामीण दहशत में हैं, कमजोर आर्थिक स्थिति आपदा प्रभावित क्षेत्र में रहने की मजबूरी है.गांव में रहने वाली पुष्पा देवी(32)अपना दर्द बयां करते हुए बताती हैं कि कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण गांव छोड़कर जा नहीं सकते हैं. पति का पैर खराब हैं दूध बेचकर गुजारा करते हैं, पूरे घर में पानी भर रहा है,घर के अंदर तिरपाल लगाकर जैसे तैसे रह रहें हैं, हर वक़्त घर गिरने का डर सताता है, वो कहती हैं कि हम एक दिन इन घरों में ही दबकर मर जाएंगे और शायद तब जाकर सरकार जागेगी.सेरी में साल 2002 लगातार भू धंसाव हो रहा है. ग्राम प्रधान राजेंद्र सिंह धामी बताते हैं कि 2002 से पहले हमारा गांव काफ़ी खुशहाल था, हिमालय की तलहटी पर बसे गाँव में फल, सब्जी और अनाज का भरपूर पैदावार होती थी, लेकिन 2002 की बरसात ने सबकुछ बदल कर रख दिया, एक रात यहां गांव के ऊपर बादल फटा और सबकुछ बदल गया. इस घटना के बाद यहां जमीन लगातार धंस रही है और हमारे सुंदर से घर खंडहर में बदल गये.गांव को कोई भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता है, कारण गांव को विस्थापित होंना है लेकिन कब ये किसी को पता नहीं है.विस्थापन की इस सरकारी लिस्ट में कई लोगों का नाम है, जो विस्थापन के इंतजार में दुनिया छोड़कर चले गये.80 साल की बुजुर्ग महिला देबकी देवी एक खंडहरनुमा घर अपनी तीन बकरियों के साथ रहती हैं,इन बकरियों के सिवाय उनका कोई नहीं है, पति और बेटे की पहले ही मौत हो गई है.घर पीछे की ओर झुक रहा है, घर पानी से भरा हुआ है, लेकिन हालात देखने वाला कोई नहीं है. तहसील स्तर के अधिकारियो से बात करने में अधिकारी कहते हैं कि गांव विस्थापन होंना हैं, लेकिन क्यों होंना है इसकी जानकारी नहीं है और जिले स्तर के अधिकारी जल्द ही विस्थापन का भरोसा देंते हैं और कुछ जोर देकर पूछने में बढ़ी ही लापरवाही से कहते हैं कि नेचर है कहीं भी कुछ भी हो सकता है.आपदाग्रस्त सेरी में 32 परिवारों का विस्थापन होंना था, जिनमें से 12 परिवारों को विस्थापित कर दिया गया है या कहा जाये इनमें से कुछ आर्थिक स्थिति बेहतर होंने के कारण गांव छोड़ चुके हैं,स्थिति ये है कि जो 19 परिवार अब यहां रह रहें हैं उनके घरों के हाल काफ़ी खस्ताहाल हैं, घर लगातर जमीन में घुस रहें,यहां स्थिति ये है कि पूरे गांव के घरों में दरवाजे खुलना भी बंद हो गये हैं, जबरदस्ती धक्का मार मारकर दरवाजे खोलते हैं.पुराने घर जमींदोज होंने के बाद अब नये घरों पर भी संकट गहरा रहा है.
विस्थापित परिवार दर दर की ठोकरें खा रहें हैं, पर इन पीड़ितों का दुखड़ा और दर्द समझने को कोई तैयार नहीं है.
सेरी गांव का विस्थापन होंना है,कई लोगों को यहां से सुरक्षित स्थान पर विस्थापित किया जा चुका है.कुछ फ़ाइल शासन स्तर पर है, शासन स्तर से अनुमति मिलने के बाद आगे की कारवाई की जायेगी. अनुराधा पाल, डीएम बागेश्वर.
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक