इंसानियत का फर्ज निभाना मजहब से बढ़कर है। मजहब से ऊपर उठकर इंसानियत,
यूँ ही कोई ललदा नहीं बन जाता
ललदा ने कहा एक छोटा सा प्रयास कभी कभार बहुत सार्थक हो जाता है। अपने 50 साल के सफर में पहली बार यह सौभाग्य मिला।
आज वृद्धाआश्रम में जब कुंती देवी जी का निधन हुआ तो उनकी चिता को अग्नि देने वाला कोई उनका चिर- परिचित मौजूद नही था न ही समाज कल्याण के फाइलों में उनके परिजनों का कोई रिकॉर्ड था।
फिर विवश निर्जीव शरीर को बस मुखाग्नि ही तो देना है ये बात सोचकर मैं तुरन्त घाट गया और समाज कल्याण के अधिकारियों से बात की।
मैंने न जाने कितने लोगों के लिए काम किया है पर आज जब मैंने घाट में एक अनजान को मुखाग्नि दी तो मुझे मेरी माँ की याद आ गयी। समाज के बीच रहने के कारण मुझे मेरी माँ के साथ रहने का बहुत कम समय मिला। उनके अंतिम समय में भी मैं उनके साथ नही था। कई बातें मेरे मन मष्तिस्क में उपज रही थी।
फिर अंतिम क्षणों में जयदा न सोचते हुए मैंने कुंती देवी जी को अपनी माँ के परिपेक्ष्य में रखकर उनके सुपुत्र समान उनकी चिता को मुखाग्नि देकर शायद मैंने अपनी माँ के दिए संस्कारों का ऋण चुका दिया है या नही मैं खुद असमंजस में हूँ।
पर जो भी आज मन बेहद प्रसन्न है।
जीवन की सार्थकता पुण्य उपार्जन से मिलती है, दूसरों के काम आने से मिलती है, इंसानियत का फर्ज निभाने से मिलती है।
कपकोट के पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण ने आज फिर मानवीय मूल्यों को सर्वोपरि रखते हुए बागेश्वर वृद्धाश्रम में रहने वाली स्वर्गीय कुंती देवी जी का पुत्र धर्म निभाते हुए बागेश्वर सरयू गोमती संगम पर अंतिम संस्कार समाज कल्याण बागेश्वर के साथियों के साथ मिलकर किया इंसानियत की यही सोच आपको एक सच्चा जनप्रतिनिधि बनाती है
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक