अल्मोड़ा। जिले में बंदरों के आतंक से मुक्ति दिलाने के दावे हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। बंदरों की बढ़ती आबादी पर रोक लगाने के लिए लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं, लेकिन जिले के लोगों को इनके आतंक से निजात नहीं मिल सकी है।
जिले में नगर से लेकर गांवों तक बंदरों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है। वन विभाग भी बंदरों के आगे बेबस नजर आ रहा है। बंदरों का झुंड किसानों की फसल बर्बाद कर रहा है। वहीं लोगों पर हमला कर उन्हें घायल कर रहा है। आठ माह में बंदरों के काटने से घायल 14 मामले दर्ज हुए हैं। वन विभाग ने दो साल के भीतर 6325 बंदर पकड़े और 3535 बंदरों का बधियाकरण किया है। इसमें 76 लाख रुपये से अधिक खर्च हुआ, लेकिन फिर भी बंदरों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है।अस्पताल में भर्ती होने पर ही मिलेगा मुआवजा
बंदर के हमले में घायल व्यक्ति अगर उपचार के लिए एक सप्ताह से अधिक समय तक अस्पताल में भर्ती होगा तब ही उसे मुआवजा मिलेगा। नई नियमावली के मुताबिक भर्ती नहीं होने पर वन विभाग पीड़ित को मुआवजा नहीं देगा।
तीन महीने में 503 लोगों पर किया हमला
अल्मोड़ा। जिला अस्पताल में तीन माह में बंदरों के हमले से 503 लोग घायल हुए हैं। अस्पताल प्रबंधन के मुताबिक मई में 171, जून में 196 और जुलाई 136 और अगस्त में अब तक 12 लोग बंदरों के काटने पर इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे हैं।
दीपक सिंह, प्रभागीय वनाधिकारी, वन विभाग, अल्मोड़ा ने बताया कि बंदरों को पकड़ने और उनका बधियाकरण करने के लिए समय-समय पर अभियान चलाया जाता है। बंदरों के हमले में घायल लोगों को मुआवजा दिया जाएगा। बंदरों के आतंक से लोगों को छुटकारा दिलाने के लिए गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं।
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक