राखी भाई-बहन के प्यार त्यौहार होता है। इसके लिए मार्केट में तरह-तरह की राखियां आती हैं। लेकिन उत्तराखंड में महिलाएं इस बार अनोखी राखियां तैयार कर रही हैं। ऐपण वाली राखी, पिरूल की राखी तो अब तक देख ही ली होगी। लेकिन इस बार एक अनोखी राखी आपको और देखने को मिलेगी। कंडाली या बिच्छू घास की राखी। अल्मोड़ा जिले की ताड़ीखेत की महिलाएं बिच्छू घास से इस बार राखी बना रही हैं।
जब इस बारे में मैंने सुना तो उत्सुकता हुई कि ये राखी कैसे बन रही है और दिखती कैसे है। तो थोड़ी ही रिसर्च में इसके बारे में मुझे जानकारी मिल गई। तो सोचा आप सभी के साथ भी साझा करूं बिच्छू घास की राखी। वो ही बिच्छू जिस से बचपन में आपको भी सजा जरूर दी गई होगी।
बिच्छू से राखी बनाने के लिए नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ नेचुरल फाइबर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी की ओर से प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बिच्छू घास के रेशे से राखी को तैयार किया जा रहा है। इसके लिए पहले तो बिच्छू को काट कर इसको पानी में भिगोने के बाद इसके रेशे से राखी तैयार की जा रही हैं।
पहाड़ों पर उगने वाली बिच्छू घास यानी हिमालयन नेटल जिसे की स्थानीय भाषा में कंडाली और शिशूंड़ कहा जाता है। कभी उत्तराखंड के गांवों में बच्चे बिच्छू घास से डरते थे। लेकिन आज यही बिच्छू घास लोगों के लिए रोजगार का जरिया बन रहा है।
बिच्छू घास से कपड़े, सजावटी सामान और अब राखी भी तैयार की जा रही है। उत्तराखंड में बिच्छू घास से जैकेट, शॉल, स्टॉल, स्कॉर्फ और बैग भी तैयार किए जा रहे हैं। जिन्हें घास के तने से रेशे निकाल कर बनाया जा रहा है। इसके कपड़ों की देश ही नहीं विदेशों से भी मांग आ रही है।
रिपोर्ट – योगिता बिष्ट रानीखेत
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक