” महिला काव्य गोष्ठी ”
( हिंदी दिवस पर)
” हिंदी दिवस’ के अवसर पर आज दि.14 सितंबर 2022 को अंतर्राष्ट्रीय काव्य संस्था के तत्वाधान में ‘महिला काव्य मंच अल्मोड़ा” इकाई द्वारा हिंदी दिवस की थीम अंतर्गत महिला काव्य गोष्ठी ऑनलाइन (Virtually)आयोजित की गई..कार्यक्रम की मुख्य अतिथि स्वरुप भारती पांडे, वरिष्ठ साहित्यकार एवं समाज सेवी प्रतिष्ठित रहीं, अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद श्रीमती नीलम नेगी पूर्व प्रधानाचार्या राजकीय आदर्श बालिका इंटर कालेज रानीखेत (अल्मोड़ा) द्वारा की गई, कार्यक्रम का संयोजन /संचालन श्री.सोनू उप्रेती प्रसिद्ध कवयित्री /साहित्यकार ने किया..
गोष्ठी का प्रारम्भ स्नेहलता बिष्ट द्वारा सुंदर सरस्वती वंदना के साथ हुआ..
कार्यक्रम में मीनू जोशी,आशा भट्ट,प्रेमा गड़कोटी,कमला बिष्ट,सोनू उप्रेती, चंद्रा उप्रेती, गीतम भट्ट, वर्षा जोशी पांडे, स्नेहलता बिष्ट, भारती पांडे एवं नीलम नेगी सहित अनेक कवियत्रियों ने काव्य वाचन, मुक्तक एवं गीत काव्य प्रस्तुत किये..
मुख्य अतिथि भारती पांडे द्वारा हिंदी भाषा के मौलिक स्वरुप,संवर्द्धन एवं भारतीय संविधान में स्वतंत्र भारत की राष्ट्र भाषा के वर्णन करते हुए अपनी बात की तत्पश्चात् काव्य एवं मुक्तक प्रस्तुत किये…
अध्यक्षीय संबोधन में नीलम नेगी द्वारा हिंदी बोलने वालों की संख्या आधार पर पूरे विश्व में तीसरी सबसे बड़ी भाषा एवं किंतु उसे अच्छी तरह समझने,पढ़ने लिखने वालों में कम संख्या एवं हिंदी भाषा पर अंग्रेजी शब्दों के प्रभाव पर विस्तृत चर्चा के साथ अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए हिंदी भाषा के सामरिक महत्व एवं संरक्षण हेतु सम्यक /व्यक्तिगत प्रयासों की महती आवश्यकता पर विचार व्यक्त किये..
सभी कवितायें मुख्यतः हिंदी दिवस एवं अन्य प्रासांगिक विषय आधारित रहीं..
अंत में कार्यक्रम अध्यक्ष नीलम नेगी द्वारा पुनः सभी प्रस्तुत रचनाओं का समीक्षात्मक पश्च पोषण करते हुए कार्यक्रम की प्रसंगिकता एवं सार्थकता की सराहना की तथा आयोजन सम्बन्धी मार्गदर्शन देते हुए सुंदर व स्तरीय कार्यक्रम आयोजन हेतु संयोजिका/संचालिका सोनू उप्रेती को साधुवाद दिया तथा सभी को ‘हिंदी दिवस’ की बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ कार्यक्रम के समापन कीऔपचारिक घोषणा की..
कार्यक्रम में प्रस्तुत कुछ काव्य पाठ /गीत काव्य की झलकियां
(मुखड़ा पंक्तियाँ ) —
“शब्द कोश ना रिक्त हों
माँ वाणी दो साथ।
गीत लिखुँ तेरे सदा
सुन लो ये अरदास”…
— स्नेहलता त्रिपाठी बिष्ट (सरस्वती वंदना)
“काश तुम वक़्त रहते आ जाते
तो ज़िन्दगी बेजान सी ना रह जाती
बूढ़ी हो चुकी काया ,उस पर झुर्रियों के
आगोश में छिपी बोझिल सी आँखे
जो तकते रहती थी ,दूर तलक रास्ते को
अब तुम तब आये हो ,जब चश्मा तो सिरहाने पर ही है
पर पहनने वाली बूढ़ी काया नहीं”…..
—-स्नेहलता त्रिपाठी बिष्ट
तमाम उम्र का किस्सा
कहता है पाखा
छांव देता है अपनी दन्यारी से
भरी दोपहरी में
भर देता है भांडे बरतन
चौमासी बनधार से
— प्रेमा गड़कोटी
अभी बहुत है तेरे दिल से मेरे दिल की दूरियां
मुझे समझ ना पाने की तेरी,कैसी हैं ये मजबूरियां
सुनो ……
गर मेरे खामोश लबों की हर बात पढ़ सको
मेरी आंखों में छुपे हर जज्बात समझ सको
तो शायद मिटे ये दूरियां…..
— चंद्रा उप्रेती
तीन रंगों का ये तिरंगा
मेरे भारत की शान है |
अपने तिरंगे पर हर
भारतवासी को अभिमान है….
— कमला बिष्ट “कमल”
* सुनो ! कविता कुछ कहती है
कहती है –
संवेदनहीन अलगाव के बीच,
झूलती, सिसकती आहें।
भावनाओं का उफ़ान रोकती,
हृदय बेधित कराहें।
आपसी मनभेदों के बीच,
अपने वज़ूद को तलाशती,
बहुत दूर निकल आई हूं….
मैं बौद्धिक विलास में नहीं
हृदय की तरलता में हूं।
गौर से सुनो,
शायद यही कहती है…..
— मीनू जोशी
* अपने आंचल में तुमको ऐसे बांध लेगी
ईजा खुद ना सो कर तुम्हें सुला देगी
वो पहन लेगी पुराना बिलौज
और तुम्हें हाथ का बुना स्वेटर पहना देगी….
—- गीतम भट्ट
* एक बार हिंदी कहती है कि
मैं पुरखों की सहेजी थी
बच्चे की पहली बोली थी……
— गीतम भट्ट
* हिन्द की हिन्दी हूँ मैं
हिन्द की शान हूँ
हिन्द की पहचान हूँ
हिन्द की ही जान हूँ।।
— सोनू उप्रेती”साँची’
* एक दर्पण है हाथ में मेरे
एक दर्पण है मेरा मन
एक दर्पण आशाएं मेरी
नित जुड़ता नित चटखता दर्पण….
— भारती पांडे
* रेत सा सरकता जीवन टूट जाती आशाएं
समेट लेती उर्मियाँ स्मृतियों की परिभाषाएं….
— भारती पांडे (मुक्तक)
* मैं पूछकर कोई प्रश्न आहत न करुँगी तुझे
ज़िंदगी बस तू स्वयं कह दे कि छांव कहां छिपा आई है…
— भारती पांडे (मुक्तक)
* हिंदी हिन्दुस्तान की भाषा
हिंदी बड़ी महान
हिंदी हिंदी हिंदी हिंदी
हिंदी तुझे प्रणाम….
— आशा भट्ट (गीत काव्य)
* इसके आगे हर भाषा फीकी
इसका अंदाज़ निराला है
हर बोली में रम जाती है
रस अलंकारों की मधुशाला है….
— वर्षा जोशी पांडे
क्या किसी देश में उसी के
अस्तित्व का स्मरण कराया जाता है?
हिंदी राष्ट्र और राजभाषा हो जिसकी
वहीं हर वर्ष, ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है…
नीलम नेगी ह्रदय की पीड़ा और मन के उद्गारों को समझा न पाती जब व्यथित चिंताओं को
निःशब्द भावों को आत्म अभिव्यक्ति दे
विवश हो तब एक कविता बना देती हूं……
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक