य छू म्यर पहाड़क रीति रिवाज-: बागेश्वर में आजकल हरी भरी स्यार में लाग रो हुड़किया बौल,उमीद करुंनु आप लोगों ग य वीडियो जरूर पसंद आल…..

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हुड़किया बौल की पुरानी परंपरा को अभी भी बनाये हुवे है ग्रामीण

हुड़किया बौल हुड़का व बौल शब्द से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है कई हाथों का सामूहिक रूप से कार्य करना। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में धान की रोपाई व मडुवे की गोड़ाई के समय हुड़किया बौल गाए जाते हैं। पहले भूमि के देवता भूमियां, पानी के देवता इंद्र, छाया के देव मेघ की वंदना से शुरुआत होती है।
मानसूनी बारिश शुरू होते ही जिले के विभिन्न स्थानों में हुड़किया बौल के साथ धान की रोपाई भी शुरू हो गई है। हुड़किया बौल के साथ धान की रोपाई काफी पुरानी परंपरा है। हुड़किया बौल में स्थानीय देवी देवताओं की स्तुति करते हुए धान की रोपाई की जाती है। कपकोट, बागेश्वर सहित गरुड़ घाटी के कई गांवों में हुड़किया बौल के साथ धान की रोपाई भी शुरू हो गई है। इधर जिलाधिकरी अनुराधा पाल ने भी हुड़किया बौल को पहाड़ की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा की संज्ञा देते हुए किसानों को बधाई दी है। साथ ही जिलाधिकारी ने खुद भी हुड़किया बौल के साथ धान की रोपाई करने की इच्छा जाहिर की है।

बता दें कि उत्तराखंड में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा रही है। हुड़किया बौल की परंपरा खेती और सामूहिक श्रम से जुड़ी है। ” बोल ” का शाब्दिक अर्थ है श्रम , मेहनता हुड़के के साथ श्रम करने को हुड़किया बोल या हुड़की बोल नाम दिया गया है। कुमाऊँ क्षेत्र में हुड़किया बोल की परंपरा काफी पुरानी है । सिंचित भूमि पर धान की रोपाई के वक्त इस विधा का प्रयोग होता है । लेकिन अफसोस है कि यह परंपरा सिमटती कृषि के साथ ही कम होती चली जा रही है।
पहले भूमि के देवता भूमियां, पानी के देवता इंद्र, छाया के देव मेघ की वंदना से शुरुआत होती है. फिर हास्य व वीर रस आधारित राजुला मालूशाही, सिदु-बिदु, जुमला बैराणी आदि पौराणिक गाथाएं गाई जाती हैं. हुड़के को थाम देता कलाकार गीत गाता है, जबकि रोपाई लगाती महिलाएं उसे दोहराती हैं. हुड़के की गमक और अपने बोलों से कलाकार काम में फुर्ती लाने का प्रयास करता है

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