बागेश्वर को ‘उत्तर का वाराणसी’ कहा जाता है. 15 सितंबर 1997 में, बागेश्वर को उत्तर प्रदेश का नया जिला बनाया गया था. जिला बनने के बाद बागेश्वर जिले में विकास के लिए 50 अरब से अधिक रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन यहां मूलभूत सुविधाएं ही पूरी नहीं हो सकीं.
वर्ष 1974 में बागेश्वर को एक अलग तहसील बनाया गया था. इसके बाद वर्ष 1976 में इसे परगना घोषित किया गया था जिसके बाद औपचारिक रूप से एक बड़े प्रशासनिक केंद्र के रूप में अस्तित्व में आया. 1985 से इसे जिला बनाने की मांग उठने लगी. इसके लिए अलग-अलग पार्टियों और क्षेत्रीय लोगों के एक जोर लगाया और आवाज उठाई. अंत में 15 सितंबर 1997 में, बागेश्वर को उत्तर प्रदेश का नया जिला बनाया गया. तब से अब तक जिला कई मील के पत्थर छू चुका है. लेकिन, जिले का विकास अनियोजित रूप से हो रहा है.
जिला बनने के बाद बागेश्वर के लोंगो आशा की एक किरण दिखाई दी थी, लेकिन आज की बात करें तो सड़क,शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और पलायन के हालत बहुत ज्यादा नहीं सुधरे.कई सालों बीतने के बावजूद नीति निर्धारकों ने बागेश्वर की सुध नहीं ली. वैसे जिले में कभी धन की कोई कमी भी नहीं रही. अब तो स्थिति ऐसी है कि इन वर्षों में जिला आर्थिक, सामाजिक रूप से पिछड़ता चला गया, 15 सितंबर 1997 को जब अल्मोड़ा से अलग होकर बागेश्वर जिला अस्तित्व में आया तो लोगों को सुविधाओं के विस्तार की एक उम्मीद सी जगी थी. इसमें काफी हद तक जिले का विकास होने की उम्मीद की जा रही थी. इन वर्षों में विकास के लिए अरबों रुपये आए. मगर नीति निर्धारकों की अदूरदर्शिता के कारण नियोजित विकास नहीं हो पाया.
बागेश्वर जिला बनने के बाद विकास के लिए लगभग 50 अरब से अधिक रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन यहां मूलभूत सुविधाएं ही पूरी नहीं हो सकीं. इन 26वें साल में जिला प्रवेश कर गया है मगर हकीकत यह है कि बीते 25 सालों में पलायन की गति तेज हुई है. सिल्वर जुबली मना चुके जिले के लोग अब भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं.
वहीं, दूसरी ओर शासन सत्ता में रहने वाले लोग अलग ही दावा कर रहे हैं. ”जिला बनने के बाद बागेश्वर का काफी विकास हुआ है. यहां शिक्षा,स्वास्थ्य,सड़क,पेयजल व्यवस्था में लगातार सुधार हुआ है. जिस मकसद से जिला बना था वो पूर्ण होता नजर आ रहा है. बागेश्वर लगातार विकास के पथ पर अग्रसर है.”
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक