पहाड़ के बीच सीढी दार खेत, और ‘हुड़किया बौल’ सुर सुनने लायक होते हैं.आप भी देखिए ये वीडियो और सुनिये लोकप्रिय गीत. ….

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कुमाऊँ में पर्व त्यौहार तो विश्व विख्यात हैं, ही यहां खुशी मनाने और नाचने गाने का मौका भी लोग ढूंढ ही लेते हैं.  पहाड़ी इलाकों में जब धान की रोपाई होती है तो खेत गीतों और हुड़के की थाप से गूंज उठते हैं. धान की रोपाई के समय गाया जाना वाले ‘हुड़किया बौल’ बहुत प्रसिद्ध है,  कुमाऊँ के कत्यूरी इलाको में जब धान की रोपाई होती है तो हुड़किया बौल के सुर सुनने लायक होते हैं.आप भी देखिए ये वीडियो और सुनिये लोकप्रिय गीत.

देव भूमी की लोक संस्कृति व रितीवाजो के पूरे देश में अपनी अलग पहचान है, उतराखंड की संस्कृति व सभ्यता की बात करे तो आज भी जिन्दा है, प्रचीन संस्कृति व संस्कार आज कही देखने को मिलते है  उतराखंड मे खेती आज भी परम्परागत रुप ही की जाती है , पहाड़ की कृषि पर आधारित यह हुडकिया बौल आज भी उतराखंड के ग्रामीण क्षेत्रो मे धान रुपाई के समय महिलाओ द्वारा गाया गीत गा कर रोपाई करते नजर आते है, दरसल बागेश्वर जनपद के गरुड़ क्षेत्र मे जब धान रुपाई के समय पहाड़ के बीच सीढी दार खेतो पर धान रुपाई करती महिलाएं सुन्दर और मधुर स्वर मे गीतो के साथ धान रोपाई मे ऐसी यत्रों की तरह ऊर्जा के साथ दिखाई देती है,उत्तराखंड में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा रही है.

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