Ganesh Chaturthi -: यहां बिना सिर के पूजे जाते गणेश जी, देवभूमि में है दुनिया का एकमात्र मंदिर….

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उत्‍तराखंड में हैं मुनकटिया भगवान, दुनिया का एकमात्र मंदिर जहां बिना सिर के श्रीगणेश विराजमान
Ganesh Chaturthi 2023 मुनकटिया मंदिर को लेकर स्‍थानीय लोगों का मानना है कि दुनिया में यह एक मात्र मंदिर है जहां भगवान गणेश की बिना सिर की मूर्ति विराजमान है। यह भगवान गणेश का मंदिर है और अपने आप में अनोखा है।
यह मंदिर है उत्तराखंड में केदारनाथ यात्रा मार्ग पर स्थित मुनकटिया गणेश मंदिर। इस मंदिर में आज भी भगवान गणेश की सिर कटी मूर्ति विराजमान है। यह मंदिर रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग से 100 मीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश का सिर काट दिया था
अपने आप में अनोख है यह मंंदिर
मुनकटिया मंदिर को लेकर स्‍थानीय लोगों का मानना है कि दुनिया में यह एक मात्र मंदिर है, जहां भगवान गणेश की बिना सिर की मूर्ति विराजमान है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार इसी स्थान पर भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश का सिर काट दिया था। यहां आज भी गणेश जी की सिर कटी मूर्ति विराजमान है। आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ीं रोचक बातें : उत्‍तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर सोनप्रयाग से करीब दो किमी आगे मुनकटिया गांव है। यहीं भगवान गणेश का प्राचीन मुनकटिया मंदिर स्थित है। मंदिर में पूजा-अर्चना व देखरेख की जिम्मेदारी स्थानीय गोस्वामी परिवार निभाता है। वहीं शिव पुराण के अनुसार, इस स्‍थान पर भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश जी का सिर काट दिया था। क्योंकि गणेशजी ने उन्‍हें माता पार्वती के कक्ष में प्रवेश करने से रोक दिया था। गणेशजी को यह जानकारी नहीं थी कि भगवान शिव जी ही उनके पिता हैं। मां पार्वती देवी गौरीकुंड में स्नान करने जा रही थीं। तब उन्होंने हल्दी के लेप से एक मानव रूप बनाया और उस शरीर में प्राण फूंक दिए। मां पार्वती ने उस मानव को अपने बेटे के रूप में स्वीकार किया। इस दौरान मां पार्वती ने अपने बेटे को आदेश दिया कि वह किसी को भी उनके कक्ष में प्रवेश न करने दे। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार सिर काटने के बाद इसी स्‍थान पर गणेशजी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया था।

इस मंदिर का नाम मुनकटिया कैसे पड़ा?

इस मंदिर का नाम मुंडकटिया नाम पर पड़ा है। मुंडकटिया शब्‍द दो शब्दों मुंड (सिर) और कटिया (विच्छेदित) से मिलकर बना है। जिसके बाद से यह मंदिर मुनकटिया मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह मंदिर त्रियुगी नारायण मंदिर से काफी नजदीक है।

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